देश की राजधानी में एक युवती से चलती बस में बलात्कार की घटना के बाद महिलाओं की सुरक्षा और उनके साथ हो रहे अत्याचार, भेदभाव को लेकर एक देशव्यापी बहस शुरू हुई है और राज्य सरकारें अपने अपने नजरिए से महिलाओं के लिए कानून बनाने में लगी हुई है। सबसे पहले मध्यप्रदेश सरकार ने महिलाओं के लिए कानून में बदलाव किया और इसके बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने महिलाओं को ध्यान में रखते हुए संशोधन किया। अब असम सरकार ने एक नई पहल करते हुए दो दिन पहले शुरू हुए नए साल 2013 को महिला एवं बाल वर्ष घोषित किया है। दिल्ली गैंग रेप के बाद देश के एक तबके के इस मसले पर जागरूक होने के बाद सरकारें भी इस दिशा में जागरूक हुई हैं, लेकिन इतना ही काफी नहीं है। सिर्फ कानून बना देने और महिलाओं की सुरक्षा की बात कर प्रदर्शन कर देने, शोक जता देने से कुछ नहीं होने वाला। बदलाव लाने के लिए मानसिकता बदलने की जरूरत है और यह किसी एक से नहीं, पूरे देश के एकजुट होने से संभव है।
दिल्ली गैंगरेप ने देश को जगा दिया, इस तरह की खबरें आईं। समाचार के हर माध्यम से तकरीबन इसी तरह की खबरें दिखाईं गईं। ऐसा होता तो बेहतर भी होता, लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू कुछ और कहता है। 16 दिसम्बर को दिल्ली में चलती बस में एक युवती से सामूहिक दुष्कर्म होता है। इसके बाद वह युवती गंभीर अवस्था में अस्पताल में भर्ती होती है। उस युवती का नाम कोई नहीं जानता लेकिन उसके नाम पर पूरे देश में आंदोलन हो जाते हैं। एक अनाम युवती की मौत के बाद पूरे देश में शोक का माहौल पैदा हो जाता है। ऐसा शायद पहली बार होता है कि एक की मौत से पूरा देश हिल गया हो, शोक सभाएं होने लगी हों, राष्ट्रीय झंडा झुकाने तक की मांग होने लगी हो, लेकिन क्या यह सब दिल से हुआ? या फिर क्षणिक आवेश था? गंभीर अवस्था में अस्पताल में भर्ती लड़की की सलामती के दुआओं के बीच उसकी मौत हो जाती है और शोक में डूबे आम लोग, वीआईपी चार दिन बाद पडऩे वाले नए साल के जश्र को नहीं मनाने का फैसला ले लेते हैं। ये क्या दिल से लिया गया फैसला था, या फिर क्षणिक आवेश की तरह था? इस दिशा में सोचने की जरूरत है।
यह सब कहने की जरूरत इसलिए पड़ रही है, क्योंकि जिस वक्त गैंगरेप के खिलाफ देश के जाग जाने की बात की जा रही थी, देश भर में आंदोलन हो रहे थे, कैंडल जलाए जा रहे थे, उस दौरान ही देश भर के अलग अलग हिस्सों में रेप की 25 घटनाएं हुईं। वैसे इससे ज्यादा भी हुई होंगी, लेकिन पुलिस में मामले दर्ज होने के आधार यह आंकड़ा सामने आया।
दिल्ली में ही एक तीन साल की बच्ची से दुष्कर्म किया गया। एक रेप पीडि़ता के साथ जांच अधिकारी ने उत्तरप्रदेश के फैजाबाद में बलात्कार किया। अहमदाबाद में एक ढाई साल की बच्ची से बलात्कार कर उसे जमीन में दबा दिया गया। क्रिसमस के दिन उस बच्ची की मौत हो गई। हैदराबाद में पांच साल की एक बच्ची बलात्कार की शिकार हुई। महाराष्ट्र्र के ट्राम्बे में एक 15 साल की किशोरी दुष्कर्म की शिकार हुई। मुंबई में नेपाली युवती के साथ गैंगरेप किया गया। श्रीनगर में महिला गैंगरेप का शिकार हुई। अगरतला में एक महिला को सरेराह नग्र कर उसका बलात्कार किया गया। सागर के एक अस्पताल में अपनी बच्ची का इलाज कराने आई महिला से अस्पताल के कर्मचारियों ने सामूहिक दुष्कर्म किया।
ये कुछ उदाहरण है, जो यह बताने के लिए काफी हैं कि देश अभी जागा नहीं है। देश का एक तबका अब भी महिलाओं को लेकर अपनी मानसिकता में गंदगी समेटे हुए है। महिलाओं के साथ अत्याचार, दुष्कर्म की घटनाएं निरंतर जारी हैं। किसी तरह के कानून, प्रावधान से इस तरह की घटनाओं को रोका नहीं जा सकता, महिलाओं पर अत्याचार, बलात्कार की घटनाएं हमारी मानसिकता के बदलने से ही रूक सकते हैं। कानूनों का राह तकने के बजाय हमें अपनी सोच में, अपनी मानसिकता में बदलाव लाना होगा।
दिल्ली गैंगरेप ने देश को जगा दिया, इस तरह की खबरें आईं। समाचार के हर माध्यम से तकरीबन इसी तरह की खबरें दिखाईं गईं। ऐसा होता तो बेहतर भी होता, लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू कुछ और कहता है। 16 दिसम्बर को दिल्ली में चलती बस में एक युवती से सामूहिक दुष्कर्म होता है। इसके बाद वह युवती गंभीर अवस्था में अस्पताल में भर्ती होती है। उस युवती का नाम कोई नहीं जानता लेकिन उसके नाम पर पूरे देश में आंदोलन हो जाते हैं। एक अनाम युवती की मौत के बाद पूरे देश में शोक का माहौल पैदा हो जाता है। ऐसा शायद पहली बार होता है कि एक की मौत से पूरा देश हिल गया हो, शोक सभाएं होने लगी हों, राष्ट्रीय झंडा झुकाने तक की मांग होने लगी हो, लेकिन क्या यह सब दिल से हुआ? या फिर क्षणिक आवेश था? गंभीर अवस्था में अस्पताल में भर्ती लड़की की सलामती के दुआओं के बीच उसकी मौत हो जाती है और शोक में डूबे आम लोग, वीआईपी चार दिन बाद पडऩे वाले नए साल के जश्र को नहीं मनाने का फैसला ले लेते हैं। ये क्या दिल से लिया गया फैसला था, या फिर क्षणिक आवेश की तरह था? इस दिशा में सोचने की जरूरत है।
यह सब कहने की जरूरत इसलिए पड़ रही है, क्योंकि जिस वक्त गैंगरेप के खिलाफ देश के जाग जाने की बात की जा रही थी, देश भर में आंदोलन हो रहे थे, कैंडल जलाए जा रहे थे, उस दौरान ही देश भर के अलग अलग हिस्सों में रेप की 25 घटनाएं हुईं। वैसे इससे ज्यादा भी हुई होंगी, लेकिन पुलिस में मामले दर्ज होने के आधार यह आंकड़ा सामने आया।
दिल्ली में ही एक तीन साल की बच्ची से दुष्कर्म किया गया। एक रेप पीडि़ता के साथ जांच अधिकारी ने उत्तरप्रदेश के फैजाबाद में बलात्कार किया। अहमदाबाद में एक ढाई साल की बच्ची से बलात्कार कर उसे जमीन में दबा दिया गया। क्रिसमस के दिन उस बच्ची की मौत हो गई। हैदराबाद में पांच साल की एक बच्ची बलात्कार की शिकार हुई। महाराष्ट्र्र के ट्राम्बे में एक 15 साल की किशोरी दुष्कर्म की शिकार हुई। मुंबई में नेपाली युवती के साथ गैंगरेप किया गया। श्रीनगर में महिला गैंगरेप का शिकार हुई। अगरतला में एक महिला को सरेराह नग्र कर उसका बलात्कार किया गया। सागर के एक अस्पताल में अपनी बच्ची का इलाज कराने आई महिला से अस्पताल के कर्मचारियों ने सामूहिक दुष्कर्म किया।
ये कुछ उदाहरण है, जो यह बताने के लिए काफी हैं कि देश अभी जागा नहीं है। देश का एक तबका अब भी महिलाओं को लेकर अपनी मानसिकता में गंदगी समेटे हुए है। महिलाओं के साथ अत्याचार, दुष्कर्म की घटनाएं निरंतर जारी हैं। किसी तरह के कानून, प्रावधान से इस तरह की घटनाओं को रोका नहीं जा सकता, महिलाओं पर अत्याचार, बलात्कार की घटनाएं हमारी मानसिकता के बदलने से ही रूक सकते हैं। कानूनों का राह तकने के बजाय हमें अपनी सोच में, अपनी मानसिकता में बदलाव लाना होगा।
Aur jaree rahenge jabtak Pratibha Patil jaise rashtrapati hame milenge...jab M.F. Husain Ko deshnikala diya gaya to kyon na aise sare rashtrapati desh se nikale jayen?Rashtrapati the ya kathputliyan?
जवाब देंहटाएंबहुत सही बात कही है आपने .सार्थक अभिव्यक्ति शुभकामना देती ”शालिनी”मंगलकारी हो जन जन को .-2013
जवाब देंहटाएंदुखद और शर्मनाक हैं घटनाएँ ..... जाने हम कहाँ जा रहे हैं कैसा विकास कर रहे हैं?
जवाब देंहटाएंमेरा हमेशा से मानना है कि क़ानून बनाना और उसका पालन करना बेहद जरूरी है |
जवाब देंहटाएंसरकार को जागना ही होगा लेकिन सबसे पहले आवाम को होश में आना पड़ेगा | अगर हम सरकार को ऊँगली दिखा रहे हैं तो बाकी की अंगुलियां सीधे तौर पर हमारी ओर ही इशारा कर रही हैं |
'हम सुधरेंगे , जग सुधरेगा |'
सादर
25 घटनाएं! और हर दिन ये संख्या बढती ही जा रही है! बहुत ही संगीन विषय है अतुल भाई। कैसे उम्मीद जगे, क्या आशा करें ... अनुत्तरित हैं बस!
जवाब देंहटाएं