एक हैं आसाराम बापू। वैसे तो ये संत हैं, पर ज्यादातर चर्चा अपने विवादास्पद कार्यों और बयानों को लेकर रहते हैं। उनके आश्रमों की अव्यवस्था को लेकर खबरें आएं या फिर देश में और भी कोई घटना हो, ये अपना एक अलग ही तर्क रखते हैं और जब उनके तर्कों को लेकर सवाल खड़ा होता है तो वे गालियां बकने लगते हैं। उनका सबसे पहला टारगेट होता है मीडिया। मीडिया को कोसने, गाली बकने का वो कोई अवसर नहीं छोड़ते और खुद को बड़ा संत बताने वाले ये सज्जन अपनी जुबान से खुद को काफी छोटा कर देने से भी परहेज नहीं करते।
ताजा मामला है महाराष्ट्र में उनकी होली का। आसाराम बड़े रंगीन शख्सियत हैं। उनका प्रिय त्यौहार होली है। वे होली का त्यौहार ऐसा खेलते हैं, मानों वे कृष्ण हो और उनके सामने मौजूद सारी जनता गोपियां। वे इन दिनों महाराष्ट्र के शहरों में घूम-घूमकर होली खेल रहे हैं। खुद मंच पर मौजूद रहते हैं और बड़े बड़े फव्हारों से अपने भक्तोंं को भिगोने का मजा लेते हैं। महाराष्ट्र के नागपुर में उन्होंने ऐसी ही होली खेली। वहां करोड़ो लीटर पानी उन्होंने अपने भक्तों को भिगोने में बहा दिया। महाराष्ट्र्र इन दिनों भीषण सूखे की चपेट में है। लोग पानी की बूंद बूंद केे लिए तरस रहे हैं। हालत यह है कि लोगों को पीने का पानी, मवेशियों के लिए पानी नहीं मिल रहा है। एक ओर पानी की किल्लत और दूसरी ओर पानी की इस तरह की बरबादी को लेकर जब मामला महाराष्ट्र के विधानसभा में गूंजा तो महाराष्ट्र सरकार ने नवी मुंबई में होने वाले आसाराम बापू के होली समारोह में पानी के फव्हारे पर पाबंदी के आदेश दे दिए।
अब आसाराम बापू को पानी की किल्लत से क्या लेना देना, उनको तो होली का मजा लेना था, सो वे भड़क गए। उनका तर्क था कि उनके समागम में लाखों लोग मौजूद रहते हैं और उन लोगों पर वो जो पानी की बौछार करते हैं, उसका औसत निकाला जाए तो प्रति व्यक्ति दस ग्राम पानी का इस्तेमाल वे करते हैं। वे कहते हैं कि वे अपने आयोजन में पलाश के फूलों का इस्तेमाल करते हैं और इससे पानी की बरबादी नहीं होती। बचाव ही होता है।
आसाराम यहीं नहीं रूके। वे यह भी कहते हैं कि ऐसे लोग उनकेे कार्यक्रम में विध्र फैलाने का काम कर रहे हैं जो धर्मांतरण के काम में लिप्त रहते हैं। उन्होंने मीडिया को गाली देते हुए कहा कि मीडिया के माध्यम से यह बात फैलाई जा रही है कि वे पानी की बरबादी कर रहे हैं जबकि ऐसा नहीं है। वे पलाश से होली खेलते हैं। इससे पानी की बरबादी नहीं होती, बचाव ही होता है।
हम आसाराम की होली का विरोध नहीं करते, पर इस तरह की होली का विरोध करते हैं। ऐसे वक्त में जब महाराष्ट्र का एक हिस्सा भीषण सूखे के दौर से गुजर रहा है। लोग पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं, ऐसे वक्त में पानी को इस तरह बहाया जाना कहीं से उचित नहीं। पानी की इस तरह बरबादी पर सवाल खड़ा करने वालों को गालियां बकने वाले और खुद को आध्यात्मिक संत कहने वाले आसाराम में शायद ही इतनी समझ बची हो कि उनकी होली खेलने और भक्तों को भिगोने से ज्यादा जरूरी पानी का दूसरा उपयोग है।
ताजा मामला है महाराष्ट्र में उनकी होली का। आसाराम बड़े रंगीन शख्सियत हैं। उनका प्रिय त्यौहार होली है। वे होली का त्यौहार ऐसा खेलते हैं, मानों वे कृष्ण हो और उनके सामने मौजूद सारी जनता गोपियां। वे इन दिनों महाराष्ट्र के शहरों में घूम-घूमकर होली खेल रहे हैं। खुद मंच पर मौजूद रहते हैं और बड़े बड़े फव्हारों से अपने भक्तोंं को भिगोने का मजा लेते हैं। महाराष्ट्र के नागपुर में उन्होंने ऐसी ही होली खेली। वहां करोड़ो लीटर पानी उन्होंने अपने भक्तों को भिगोने में बहा दिया। महाराष्ट्र्र इन दिनों भीषण सूखे की चपेट में है। लोग पानी की बूंद बूंद केे लिए तरस रहे हैं। हालत यह है कि लोगों को पीने का पानी, मवेशियों के लिए पानी नहीं मिल रहा है। एक ओर पानी की किल्लत और दूसरी ओर पानी की इस तरह की बरबादी को लेकर जब मामला महाराष्ट्र के विधानसभा में गूंजा तो महाराष्ट्र सरकार ने नवी मुंबई में होने वाले आसाराम बापू के होली समारोह में पानी के फव्हारे पर पाबंदी के आदेश दे दिए।
अब आसाराम बापू को पानी की किल्लत से क्या लेना देना, उनको तो होली का मजा लेना था, सो वे भड़क गए। उनका तर्क था कि उनके समागम में लाखों लोग मौजूद रहते हैं और उन लोगों पर वो जो पानी की बौछार करते हैं, उसका औसत निकाला जाए तो प्रति व्यक्ति दस ग्राम पानी का इस्तेमाल वे करते हैं। वे कहते हैं कि वे अपने आयोजन में पलाश के फूलों का इस्तेमाल करते हैं और इससे पानी की बरबादी नहीं होती। बचाव ही होता है।
आसाराम यहीं नहीं रूके। वे यह भी कहते हैं कि ऐसे लोग उनकेे कार्यक्रम में विध्र फैलाने का काम कर रहे हैं जो धर्मांतरण के काम में लिप्त रहते हैं। उन्होंने मीडिया को गाली देते हुए कहा कि मीडिया के माध्यम से यह बात फैलाई जा रही है कि वे पानी की बरबादी कर रहे हैं जबकि ऐसा नहीं है। वे पलाश से होली खेलते हैं। इससे पानी की बरबादी नहीं होती, बचाव ही होता है।
हम आसाराम की होली का विरोध नहीं करते, पर इस तरह की होली का विरोध करते हैं। ऐसे वक्त में जब महाराष्ट्र का एक हिस्सा भीषण सूखे के दौर से गुजर रहा है। लोग पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं, ऐसे वक्त में पानी को इस तरह बहाया जाना कहीं से उचित नहीं। पानी की इस तरह बरबादी पर सवाल खड़ा करने वालों को गालियां बकने वाले और खुद को आध्यात्मिक संत कहने वाले आसाराम में शायद ही इतनी समझ बची हो कि उनकी होली खेलने और भक्तों को भिगोने से ज्यादा जरूरी पानी का दूसरा उपयोग है।
बापू जी हमेशा ही विवादित रहे,उनके लिए ये नई बात नही है,,,
जवाब देंहटाएंRecent Post: सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार,
जवाब देंहटाएंयह आधुनिक दुर्भाषा है
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बहुत सही कहा है आपने .सार्थक प्रस्तुति आभार हाय रे .!..मोदी का दिमाग ................... .महिलाओं के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
जवाब देंहटाएंआसाराम बापू का विवादों से पुराना से पुराना नाता है !!
जवाब देंहटाएंवैसे तो मै आसाराम बापू को मानता नही पर सुना है कांग्रेस उससे ज्यादा पानी बहा रही है एक नजर आपके लिये अगर आप खांग्रेसी नही हैं तो
जवाब देंहटाएंhttp://blog.sureshchiplunkar.com/2013/03/drought-in-maharashtra-government-and.html
वाह...!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आभार!
किसी रूप मे यह संत नहीं लगता !
जवाब देंहटाएंआज की ब्लॉग बुलेटिन होली तेरे रंग अनेक - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
नागपुर में खेल ली होली ५ टेंकर पेयजल से और आज और कल दो दिन आधा नागपुर तरसेगा बूँद-बूँद पानी को...सुना ये सबकुछ जानते हैं तब इतनी सी बात क्यों नहीं समझती?... सटीक आलेख... आभार
जवाब देंहटाएंबूंद बूंद सहेजने में हर किसी को योगदान देना है ..... ये इन्हें भी समझना ही चाहिए
जवाब देंहटाएंआसाराम बापू विवादित हो रहे हैं, इसके कई कारण भी हैं। एक कारण तो उनका अनर्गल बोलना ही है। लेकिन दूसरा कारण यह भी है कि अनावश्यक मीडिया उन्हें भाव देता है। मीडिया क्यों उन्हें भाव दे रहा है या बदनाम कर रहा है, इसका कारण धर्मान्तरण से शायद जुडा हुआ है, ऐसा मुझे लगता रहा है। क्योंकि वे आदिवासी क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं और उनके कार्य से धर्मान्तरण में रूकावट आती है। उनका होली खेलना, वह भी महाराष्ट्र में, निंदनीय ही है। उनके गाली-गलौज से समाज का भला नहीं हो सकता, उन्हें स्वयं पर नियन्त्रण रखना चाहिए।
जवाब देंहटाएंअजित जी,आपका कहना सही है कि मीडिया इन्हें जरूरत से ज्यादा भाव देता है लेकिन एक तरीके से अच्छा ही है इनके कुछ अंधभक्तों को कुछ तो अक्ल आएगी कि जिसे भगवान मानते हैं वो वास्तव में कैसा है।जहाँ तक धर्मांतरण में रोडा होने की बात है तो ये काम वास्तव में आर एस एस कर रहा है न कि आसाराम बापू ।
हटाएंपानी मत बचाना यार
जवाब देंहटाएंजिन्हें पानी में डूबकर मरना चाहिए
वे सब तैरना सीख चुके हैं।