उम्मीद तो यह की जा रही थी कि काटजू इस मामले में इलेक्ट्रानिक मीडिया में लगातार चल रही खबरों पर कुछ कहेंगे। वे कहेंगे कि गुरूवार दोपहर से लेकर लगातार इस तरह की खबरें दिखाई जा रही हैं, मानों संजय दत्त के साथ किसी तरह का अन्याय हो गया हो, या फिर संजय दत्त को सजा दिए जाने से देश का, समाज का कोई बड़ा अहित हो गया हो, यह गलत है, लेकिन काटजू साहब ने इस मसले पर मुंह खोला तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ही सवाल खड़े कर गए। वे खुद सुप्रीम कोर्ट के जज रह चुके हैं, यानि यह माना जाए कि उन्होंने जो भी फैसले दिए हैं, वे भावनाओं में बहकर दिए हैं, गवाह, सबूत उनके लिए महत्वपूर्ण नहीं था।
बात न्यूज चैनलों की करें तो तकरीबन हर चैनल में इस आशय की खबरें आ रही हैं कि संजय दत्त पर बालीवुड का करोड़ो-अरबों रूपए दांव पर लग गया है और संजय दत्त के जेल चले जाने से कई निर्माताओं को बड़ा नुकसान होगा, कई फिल्में अधर में लटक जाएंगी। न्यूज चैनल संजय दत्त, जो पहले से 'हीरो' हैं, को हीरो बनाने की कोशिश में लगे रहे और उसका क्या, जो मुंबई पिछले बीस बरस से भुगत रही है। संजय दत्त ने यह जरूर कहा है कि वे न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हैं, लेकिन उन्होंने कहा है कि पिछले बीस बरसों में वे काफी कुछ भुगत चुके हैं, करीब डेढ़ साल जेल में रह चुके हैं और अब उनको सजा हो जाने से सिर्फ वो नहीं, उनकी पत्नी और उनके बच्चे भी इस सजा को भुगतेंगे।
हम इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा मामले में सुनाई गई सजा के साथ की गई टिप्पणी का जिक्र करना चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की है कि इस मामले में याकूब मेमन धनुष चलाने वाले की भूमिका में था और उसने बाकी लोगों को तीर की तरह इस्तेमाल किया। यानि कि किसी न किसी तरह संजय दत्त भी तीर की भूमिका में रहा। यह अलग बात है कि संजय दत्त की भूमिका बुंबई के धमाकों में सीधे तौर पर नजर नहीं आई है लेकिन उनके पास से उस दौरान घातक हथियार मिले थे और यही वजह है कि वे इस षडय़ंत्र के दायरे में आ गए।
मुंबई में 1993 में हुए धमाकों में कई घरों के चिराग छिन गए थे, कई लोगों को ऐसा जख्म लगा था, जो ताउम्र नहीं मिट सकता। उस पीड़ा के सामने संजय दत्त को दी गई सजा कोई मायने नहीं रखती, लेकिन बात की जा रही है, सिर्फ संजय दत्त को लेकर, उनकी फिल्मों को लेकर, निर्माताओं के नुकसान को लेकर। हम सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को जायज ठहराते हैं और उम्मीद करते हैं कि इस तरह के फैसले से न्याय व्यवस्था के प्रति लोगों का विश्वास मजबूत होगा। साथ ही हम इस मामले में काटजू साहब की बातों का विरोध करते हैं। किसी वक्त काटजू साहब ने देश की नब्बे फीसदी आबादी को बेवकूफ कहा था, अब संजय दत्त के मुद्दे पर अपने तर्कों के साथ उन्होंने खुद को इस नब्बे फीसदी की जमात में खड़ा कर लिया है। एक बानगी यह है कि काटजू मुन्नाभाई सीरिज की फिल्म देखकर संजय दत्त को गांधीजी की विचारधारा को आगे बढ़ाने वाला बताकर उनके लिए माफी मांग रहे हैं तो क्या काटजू अग्रिपथ और खलनायक जैसी फिल्में देखकर अपने विचार बदल सकते हैं?
वक्तव्य से पहले विचार तो करें इनके जैसे जाने माने लोग .... हैरान करती हैं ऐसी बातें,
जवाब देंहटाएंसंजय दत्त से सहानुभूति होना स्वाभाविक है पर कई लोग इससे भी मामूली अपराधों के लिए लम्बी सजाये भुगत रहें हैं उनके लिए कोई क्यों नहीं सोचता
जवाब देंहटाएंक़ानून ने तो फैसला सूना दिया है फिर बहस क्यों,,,,,
जवाब देंहटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनायें!
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आपने बिलकुल सही कहा . लोग ख़बरों म बने रह्ने केलिए गलत बयां बाजी कर रहे है.
जवाब देंहटाएंमैं निरंजन जैन जी से सह मत हूँ
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वाह! बहुत ख़ूब! होली की हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंकाटजू जैसे लोग न्यायपालिका का विरोध करें यह अवमानना का मामला है तुरन्त सुप्रीम कोर्ट को कार्यवाही करनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंdekhna tho ye hoga ki aab jail main kitni suvidhao ko lekar jayege sanju baba....aur sahi kaha aap ne nirmatao ka 2oo cr se bhi jayada paisa sanju baba pe laga hai ...dekhtein hain aage ye croro rupee kya khel dekhatein hain ...
जवाब देंहटाएंआपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज २७ मई, २०१३ के ब्लॉग बुलेटिन-आनन् फ़ानन पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |
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