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साभार के साथ पत्रिका अखबार में इस आशय की छपी खबर |
छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा का नारा बुलंद किया जाता है यहां, पर माफ करें प्रदेश के शिक्षा मंत्री महोदय आपकी हरकतें आपको बढिय़ा नहीं, घटिया साबित कर रही हैं। प्रदेश के शिक्षा मंत्री केदार कश्यप को लेकर एक खबर आई है कि उन्होंने एक मेधावी बच्ची की शिक्षा के लिए मदद मांगे जाने पर उस बच्ची और मदद मांगने गईं उसकी शिक्षिका दोनों को उठाकर बाहर फेंक देने का आदेश दे दिया!
खबर का सार यह है कि एक सामाजिक कार्यकर्ता जो कोचिंग सेंटर चलाती हैं, के यहां एक मुस्लिम बच्ची (बच्ची का नाम कुछ भी हो सकता है) पढ़ती है। यह बच्ची होनहार है। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं, पर आगे पढऩे की ललक है। यह सामाजिक कार्यकर्ता उस बच्ची को लेकर शिक्षा मंत्री के पास जाती हैं। उनसे बच्ची की शिक्षा के लिए मदद की गुहार लगाती हैं लेकिन जैसे ही मंत्री महोदय बच्ची के आवेदन में उसका समुदाय देखते हैं, उनके मुंह से निकलता है, अच्छा ये मुस्लिम है। वे अपने सुरक्षा कर्मियों को बुलाते हैं और दोनों को उठाकर बाहर फेंक देने का आदेश दे देते हैं।
ये वही शिक्षा मंत्री हैं, जिनकी पत्नी ने कुछ समय पहले 'मुन्नीबाई' का दर्जा हासिल किया था। जी हां! इनकी पत्नी को कॉलेज पास करने का कीड़ा काटा था, पर उनमें योग्यता नहीं थी तो उन्होंने सिर्फ परीक्षा के लिए फार्म भरा था और परीक्षा किसी और ने दी थी। मामला पकड़ में आ गया और पूरे प्रदेश में बवाल मच गया था। अब ऐसे शिक्षा मंत्री से और बेहतर की क्या उम्मीद की जा सकती है।
पर प्रदेश के मुखिया। पेशे से चिकित्सक रहे प्रदेश के मुखिया को अपनी टीम के ऐसे साथियों की गंभीर बीमारी पर कोई ठोस इलाज करना चाहिए। न जाने क्या मजबूरी है, वो ऐसा नहीं कर रहे हैं। पहले मामले में मुखिया ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया था कि परीक्षा मंत्री ने थोड़े ही दिया है। इस बार हालांकि उन्होंने अपने मंत्रियों को संयम बरतने की सलाह दी है। डाक्टर साहब, अब ऐनासीन, क्रोसीन से काम नहीं चलने वाला... आपके मंत्रियों की बीमारी गंभीर हो गई है, ऑपरेशन कीजिए, तभी सुधार होगा।