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01 दिसंबर 2015

ऑपरेशन कीजिए डॉक्टर साहब!

साभार के साथ पत्रिका अखबार में इस आशय की छपी खबर
कुछ समय पहले मैंने लिखा था कि प्रदेश का शिक्षा मंत्री प्रदेश भर में शिक्षा ग्रहण करने वाले विद्यार्थियों के लिए रोल मॉडल होता है... पर माफ करें, ये तो कतई रोल मॉडल नहीं हो सकते, यह उस समय भी तय था और इन महाशय ने अपनी हरकतों से इस बात पर फिर से मुहर लगाने का काम कर दिया है। शिक्षा हर किसी का अधिकार होता है और बेहतर शिक्षा के लिए किसी मेधावी बच्चे को यदि उसके मजहब के आधार पर आंका जाए तो माफ करें, इनकी बुद्धि पर तरस आता है।
छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा का नारा बुलंद किया जाता है यहां, पर माफ करें प्रदेश के शिक्षा मंत्री महोदय आपकी हरकतें आपको बढिय़ा नहीं, घटिया साबित कर रही हैं। प्रदेश के शिक्षा मंत्री केदार कश्यप को लेकर एक खबर आई है कि उन्होंने एक मेधावी बच्ची की शिक्षा के लिए मदद मांगे जाने पर उस बच्ची और मदद मांगने गईं उसकी शिक्षिका दोनों को उठाकर बाहर फेंक देने का आदेश दे दिया!
खबर का सार यह है कि एक सामाजिक कार्यकर्ता जो कोचिंग सेंटर चलाती हैं, के यहां एक मुस्लिम बच्ची (बच्ची का नाम कुछ भी हो सकता है) पढ़ती है। यह बच्ची होनहार है। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं, पर आगे पढऩे की ललक है। यह सामाजिक कार्यकर्ता उस बच्ची को लेकर शिक्षा मंत्री के पास जाती हैं। उनसे बच्ची की शिक्षा के लिए मदद की गुहार लगाती हैं लेकिन जैसे ही मंत्री महोदय बच्ची के आवेदन में उसका समुदाय देखते हैं, उनके मुंह से निकलता है, अच्छा ये मुस्लिम है। वे अपने सुरक्षा कर्मियों को बुलाते हैं और दोनों को उठाकर बाहर फेंक देने का आदेश दे देते हैं।
ये वही शिक्षा मंत्री हैं, जिनकी पत्नी ने कुछ समय पहले 'मुन्नीबाई' का दर्जा हासिल किया था। जी हां! इनकी पत्नी को कॉलेज पास करने का कीड़ा काटा था, पर उनमें योग्यता नहीं थी तो उन्होंने सिर्फ परीक्षा के लिए फार्म भरा था और परीक्षा किसी और ने दी थी। मामला पकड़ में आ गया और पूरे प्रदेश में बवाल मच गया था। अब ऐसे शिक्षा मंत्री से और बेहतर की क्या उम्मीद की जा सकती है।
पर प्रदेश के मुखिया। पेशे से चिकित्सक रहे प्रदेश के मुखिया को अपनी टीम के ऐसे साथियों की गंभीर बीमारी पर कोई ठोस इलाज करना चाहिए। न जाने क्या मजबूरी है, वो ऐसा नहीं कर रहे हैं। पहले मामले में मुखिया ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया था कि परीक्षा मंत्री ने थोड़े ही दिया है। इस बार हालांकि उन्होंने अपने मंत्रियों को संयम बरतने की सलाह दी है। डाक्टर साहब, अब ऐनासीन, क्रोसीन से काम नहीं चलने वाला... आपके मंत्रियों की बीमारी गंभीर हो गई है, ऑपरेशन कीजिए, तभी सुधार होगा।

19 नवंबर 2012

पानी में तैरते स्‍कूल

 शिक्षा मौजूदा दौर में व्यवसाय की तरह हो गया है और पब्लिक स्कूलों की बाढ़ तकरीबन हर कस्बे, शहर में पनपने लगे हैं। पहले कोचिंग क्लास के रूप में और बाद में यह स्कूलों में तब्दील होता गया और स्कूलों को हींग लगे न फिटकरी, रंग आए चोखा का सौदा मानते हुए काम किया जा रहा है, ऐसे में एक खबर आई है बंग्लादेश से, जो वास्तव में मिसाल है। यहां कुछ स्कूलें चलाई जा  रही हैं जो बच्चों को शिक्षा देने के उद्देश्य से शुरू की गई हैं, किसी तरह के फायदे के लिए नहीं। ये स्कूलें निजी तौर पर चल रही हैं। यहां बच्चे आते हैं। शिक्षा अर्जित करते हैं। व्यवहारिक ज्ञान और व्यवसायिक ज्ञान भी हासिल करते हैं। सब कुछ बच्चों को जीवन में आगे बढऩे के उद्देश्य को लेकर हो रहा है। न किसी तरह के मुनाफे की फिकर और न ही किसी तरह के सरकारी मदद की चाह।
खबर इसलिए भी खास है क्योंकि ये स्कूलें पानी में तैरती हुई नाव में चलती हैं। बंग्लादेश में ऐसे तैरते हुए स्कूल परियोजना को सौर उर्जा के माध्यम से चलाया जा रहा है। बंग्लादेश की मुख्य समस्या है, जमीन का  कम होना और आबादी का ज्यादा होना। यहां अधिकतर समय नदियों के पानी की वजह से बाढ़ के हालात रहते हैं और बस्तियां डूबी रहती हैं। ऐसे में सबसे बड़ी समस्या होती थी शिक्षा की। इस समस्या का समाधान निकाला गया, तैरते हुए स्कूल की परियोजना पर काम करने का और यह काम किया सिंधुलाई स्वनिर्वर संस्था ने। इस संस्था के प्रमुख मुहम्मद रिजवान कहते हैं कि नदियों के किनारे रहने वाले लोग तमाम तरह की कठिनाईयों से गुजरते हैं। सड़कों से लेकर सूचना का हर साधन उनकी पहुंच से दूर हो जाता है। बच्चे बरसात में स्कूल नहीं जा सकते। इस वहज से बच्चों ने स्कूल जाना ही छोड़ दिया था। यह सब असहनीय था और उन्होंने इस समस्या से निजात पाने के लिए कुछ करने का फैसला लिया और इस तरह शुरू हुआ उनका तैरता हुआ स्कूल। इस इलाके की जो समस्या थी,  उसे ही वहां की खासियत बना दी गई और बच्चों को तैरती हुई नाव में शिक्षा देने का काम  शुरू कर दिया गया। अब करीब 20 नावों में शिक्षा का घर चल रहा है और  हर नाव में तकरीबन 30 बच्चों के लिए जगह है। इस तरह करीब 16 सौ बच्चे यहां अध्ययन कर रहे हैं। इन स्कूलों में टीवी, कम्प्यूटर, लैपटाप, इंटरनेट, लाईब्रेरी जैसी तमाम सुविधाएं हैं।
इस समय यह स्कूल निजी तौर पर कुछ दानदाताओं के दान से इकटठा हुई राशि से चल रही है लेकिन स्कूल के संचालक इन स्कूलों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। हम इस तरह के काम करने वाले रिजवान के हौसले की तारीफ करते हैं और उम्मीद करते हैं कि रिजवान ने जो काम शुरू किया है, वह शिक्षा की रौशनी बिखेरते हुए एक बेहतर संदेश के तौर पर अपने देश में भी और पूरी दुनिया को रौशन करेगा।