दारू जो कराए कम है! और दारू की लत.... पूछो मत! ! लोग अपना मान सम्मान और बाकी सब भूलकर दारू के लिए सब कुछ करने तैयार हो जाते हैं! ! ! इस हफ्ते राजनांदगांव के कुछ पत्रकारों ने भी ऐसा ही किया और दारू पीने की ललक ने उनको दूसरों के सामने हाथ फैलाने भी मजबूर कर दिया! ! ! ! सुबह सबेरे पत्रकार अपने घर से निकले तो थे छत्तीसगढ विधानसभा की कार्रवाई देखने और इस यात्रा को नाम दिया गया अध्ययन यात्रा पर रात को जब पत्रकार वापस अपने घरों को लौटे तो उनका अनुभव काफी बुरा था। चंद पत्रकारों यानि चार पांच लोगों की वजह से यह अध्ययन यात्रा दूसरे पत्रकारों के लिए शर्मनाक वाक्या बनकर रह गया। दरअसल में छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री और राजनांदगांव के विधायक डा रमन सिंह ने अपने विधानसभा क्षेत्र के पत्रकारों के लिए विधानसभा की कार्रवाई का अवलोकन और अध्ययन का कार्यक्रम तैयार किया था। यह कार्यक्रम वैसे तो काफी अच्छा और सराहनीय था पर इस कार्यक्रम को मूर्तरूप देने का जिम्मा उठाने वाले जिला प्रशासन और जिला जनसम्पर्क कार्यालय की पत्रकारों के सम्मान को लेकर अनदेखी के कारण अव्वल तो प्रमुख पत्रकारों ने कार्यक्रम से खुद की दूरी बना ली। प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के चर्चित चेहरों के कार्यक्रम से खुद को अलग कर लिए जाने के बाद जनसम्पर्क विभाग को थोडा सुकून फिर भी मिला कि उनको करीब 20 से 25 पत्रकार मिल गए थे जो मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में संख्या दिखाने उनके लिए पर्याप्त थे पर जिन चेहरों को मुख्यमंत्री नाम से पहचानते हैं उनकी गैर मौजूदगी ने विधानसभा में असर तो दिखाया और जो जानकारी मिली उसके मुताबिक कार्यक्रम रूखा रूखा सा रहा। जो गए थे, उनको पता चला है कि एक एक सूटकेश और उसके भीतर सफारी सूट का कपडा रखकर ‘गिफ्ट’ दिया गया। मिनी बस में ले जाए गए पत्रकारों को होटल बेबीलोन में खाना खिलाया गया।
यहां तक तो ठीक ही था..... पर इसके आगे जो हुआ वह शर्मनाक ही कहा जाएगा। पिछले दो तीन दिनों से मैं सोच रहा था कि जिन अखबारों के पत्रकार इस ‘अध्ययन यात्रा’ में शामिल हुए थे, उन्होंने इस पर अपने अखबारों में कुछ क्यों नहीं लिखा और फिर जिला जनसम्पर्क विभाग जो सरकार की छोटी से छोटी उपलब्धियों को बडे से बडे प्रेस नोट में तब्दील करता है, उसने पत्रकारों को विधानसभा घुमाने के इस ‘महति’ कार्य पर कोई रपट क्यों नहीं जारी की.... पर इसका जवाब मुझे बाद में मिला...... ‘अध्ययन यात्रा’ एक तरीके से कुछ पत्रकारों की दारू की लत के चलते ‘शर्मनाक यात्रा’ में बदल गई थी.... तो कैसे इस पर कोई पत्रकार कलम चलाता और कैसे जनसम्पर्क विभाग रपट जारी करता...... खैर मैं इस ‘अध्ययन यात्रा’ का हिस्सा नहीं था और मैंने पहले ही आमंत्रण के सरकारी रवैये से नाराज होकर इस आयोजन से किनारा कर लिया था... हमेशा की तरह... अपनी आदत के चलते..... और सच लिखने की अपनी बदनाम आदत के चलते उस कथित अध्ययन यात्रा की कहानी यहां लिख रहा हूं।
इसी महीने के दूसरे गुरूवार यानि 8 सितम्बर को विधानसभा भ्रमण का कार्यक्रम तय हुआ था। जनसम्पर्क विभाग ने जिला मुख्यालय के सभी प्रमुख पत्रकारों को टेलीफोन कर मुख्यमंत्री के आमंत्रण की खबर दी और सबको सुबह आठ बजे जनसम्पर्क कार्यालय में उपस्थित होने का आग्रह किया था। प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकारों को रायपुर ले जाने और मिनी बस की व्यवस्था की गई थी और उन्हें बकायदा बताया गया था कि विधानसभा भ्रमण के बाद होटल बेबीलोन में लंच का कार्यक्रम है। आमंत्रण के तरीके और जाने के साधन से नाराज होकर प्रमुख लोगों ने इससे दूरी बना ली जिसमें मैं भी शामिल था। मेरे अलावा इलेक्ट्रानिक मीडिया से जी छत्तीसगढ, साधना टीवी और दूरदर्शन के पत्रकार इस कार्यक्रम में नहीं गए तो प्रिंट से हरिभूमि, नवभारत, सबेरा संकेत और नांदगांव टाईम्स ने भी दूरी बना ली।
खैर...... जो गए उनके लिए विधानसभा भ्रमण एक अच्छा अनुभव होना चाहिए था और वहां विधानसभा की कार्रवाई देखकर वो एक अच्छा अनुभव और ‘गिफ्ट’ लेकर लौटते.... पर चंद पत्रकारों की दारूबाजी की लत ने सबको बुरा अनुभव दे दिया! सुबह आठ बजे यहां से निकलने वाले पत्रकार यहां से करीब साढे दस से 11 के आसपास निकले और सीधे विधानसभा पहुंचे। करीब डेढ दो घंटे तक विधानसभा भ्रमण और फिर कार्रवाई देखने के बाद वादे के अनुरूप वो होटल बेबीलोन ले जाए गए जहां उनका भोजन का कार्यक्रम था..... इसी जगह में कुछ पत्रकार अपनी दारू की लत पर काबू नहीं रख पाए और उन लोगों ने भरी दोपहरी को बेबीलोन में दारू पिया। बात नहीं खुलती यदि वो दारू पीने के बाद उसका बिल भर देते और चुपचाप भोजन कर घर लौट जाते लेकिन.........
चार से पांच पत्रकारों ने दारू पिया और उनका बिल बना 3876 रूपए! अब इनके पास दारू के बिल भरने के लिए पैसे नहीं थे! ! सो शुरू हो गया चंदा करने का काम! ! ! किसी की जेब में सौ रूपए थे तो किसी की जेब में दो सौ रूपए! ! ! ! उन बेचारों ने तो सरकारी खजाने से खाने के साथ दारू का बिल भी पटेगा ये सोच रखा था शायद! ! ! ! ! पर बिल आ गया! ! ! ! ! ! ! क्या करते....... जिनने नहीं पी या ये कहें जो पीते ही नहीं उनसे भी चंदा किया गया! ! ! ! ! ! ! ! जनसम्पर्क विभाग से उनके साथ गए लोगों के पास भी इतने रूपए नहीं थे सो उनने दूसरे पत्रकारों से मांग मांग कर बिल के पैसे इकट्ठे किए और फिर बिल पटाया गया! ! ! ! ! !
बहरहाल, राजनांदगांव से विधानसभा के अध्ययन पर गए पत्रकारों के दल के स्वागत सत्कार के लिए बेबीलोन होटल में मौजूद रायपुर जनसम्पर्क विभाग के अफसरों के सामने भी यह अनूठा नजारा था...... पत्रकारों ने दारू तो पी ली पर जेब में रूपए नहीं थे....उनके सामने भी दूसरे पत्रकारों को शर्मिंदगी का सामना करना पडा। अब कुछ लोग कहेंगे दारू ही तो पी ही... चोरी तो नहीं की.... पर क्या ये माहौल और तरीका उचित था........... ?????
राजनांदगांव के पत्रकारों को लेकर ये पोस्ट भी पढें-
यह तो समाज का दुर्भाग्य है कि जिनके कंधे पर उसके निर्माण की जिम्मेवारी है वही गैरजिम्मेवार है
जवाब देंहटाएंकुछ कम कारण नही कि नेताओं से ज्यादा पत्र्कारों की हसियत जनता की नजर मे गिर गयी है। कोई भी खबर हो पहली गाली आदमी अखबार को पत्र्कार को ही देता है। वैसे आपकॊ मै एक हास्यास्पद घटना बता हूं मेरी फ़ैक्ट्री मे आ जा के तो सामान्य पत्रकार अंदाजा लगा ही चुके थे और उनमे से भी अधिकांश पूर्व परिचित थे कि मेरे यहां चंदा या विज्ञापन नही मिलता। खैर ब्लाग लेखन शुरू करने के बाद राजधानी के एक प्रमुख पत्रकार और ब्लागर ने मुझसे संपर्क साधा पहले वचन थे कि आप बड़ा अच्छा लिखते हैं फ़िर कहा आप प्ल्यावुड मे है बड़ी टैक्स चोरी है यूरिया का उपयोग होता है फ़िर कहा मिडटाउन मे मिलते हैं लंच मे। मैने क्या जवाब दिया तो निजी है फ़िर उनसे मुलाकात नही हुयी दूसरी बार खैर मीडिया को खुद को नियंत्रित करना होगा बाकी रास्ते घातक हैं
जवाब देंहटाएं@ अरूण जी.... सही कहा आपने गिरते स्तर के लिए हम खुद(पत्रकार) जिम्मेदार हैं।
जवाब देंहटाएं@ अरूणेश जी..... हैसियत ऐसे ही चंद लोगों की वजह से गिरी है, और ऐसों की वजह से सब बदनाम होते हैं। आपकी आपबीती जैसी घटनाएं अक्सर होती हैं..... सच कहा, मीडिया को खुद को नियंत्रित करना होगा।
अच्छी पोस्ट अतुल जी बधाई
जवाब देंहटाएंफ्री की पीते पीते आदत पड़ जाती है बेचारों की !!
जवाब देंहटाएंहमें अपनी जिम्मेदारी को समझकर उसके हिसाब से ही आचरण करना चाहिए ....
जवाब देंहटाएंएक गंभीर मुद्दा है यह।
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट सोंचने को मजबूर करती हुई ..........
जवाब देंहटाएं@Arunesh c dave
जवाब देंहटाएंKamal karte ho yar.........isi liye uria ki chay pilate ho. :)
खबरनवीशों की खबर को हम सब तक पहुंचाने के लिए अतुल जी आपको बधाई। वास्तव में आज कल कुछ लोग पत्र और पत्रकारिता को बदनाम करने में लगे हुए हैं। पत्रकारों को बहकाने की हर कोशिश में शासन और प्रशासन के लोग कामयाब हो रहे हैं, वास्तव में यह पत्रकारिता के मापदंड के विपरीत पत्रकारिता कर रहे लोगों के कारण हो रहा है। आपको याद है महासमुंद में भी कुछ पत्रकारों ने पीआरओ के माध्यम कलेक्टर से जिला प्रशासन की महिमा वंदना के लिए एक एक हजार रुपए लिए थे। पत्रकारिता के जनक आदि पत्रकार नारद जी आज होते तो शायद यह देख सुन उनकी क्या दशा होती।
जवाब देंहटाएंये काला सच तो मैं बचपन में ही देख चुका था..यानि 25 साल पहले...उसके बाद के हालात पर आश्चर्य करना ही छोड़ दिया था। बाकी तो सच का पता है ही।
जवाब देंहटाएंअपनी जिम्मेदारियों के प्रति बहुत ही गैरजिम्मेदार होते जा रहे हैं लोग। पत्रकार वर्ग से आम जनता की विशेष अपेक्षाएं रहती हैं । उन्हें हमारा ध्यान रखना चाहिए। शराब सम्बन्धी जो वृत्तान्त आपने बताया वह दुखद है।
जवाब देंहटाएं@ तुषार जी शुक्रिया।
जवाब देंहटाएं@ शेखावत जी सच कहा आपने।
@ रेखा जी, जिम्मेदारी का अहसास न होने के कारण ही ऐसी घटनाएं होती हैं।
@ मनोज जी, सच में गंभीर बात है यह।
@ शुक्रिया सुनील जी।
@ ललित जी आपका भी शुक्रिया।
@ दिव्या जी, सच कहा पत्रकारों से लोगों को बहुत ज्यादा उम्मीदें रहती हैं पर इस तरह की हरकत कर कुछ पत्रकार पूरे कौम को बदनाम करने का काम करते हैं जो दुखद है।
जवाब देंहटाएं@ नीरज जी बहकने वाले पत्रकार हों तो शासन और प्रशासन उनको बहकाएंगे ही। सच कहा आपने पत्रकारिता के मापदंड के विपरीत काम करने वालों के कारण ऐसे हालात पैदा हो रहे हैं। हां मुझे याद है महासमुंद की वो घटना। ऐसी ही घटना पिछली दीवाली के बाद राजनांदगांव में भी हुई थी जिसमें पत्रकारों को चंद रूपए खैरात की तरह बांटे गए थे और पत्रकारों ने लाईन में लगकर इसे हासिल भी किया था। उस वक्त इसे भी मैंने अपने ब्लाग में लिखा था... वास्तव में आज पत्रकारिता के जनक नारद जी होते तो वो शर्मिंदा हो जाते।
जवाब देंहटाएं@ बोले तो बिंदास, शुक्रिया आपका।
शराब पीना कतई बुरा नही, ना ही इसे छुपाने की कहीं कोई जरूरत है, पर दुर्भाग्य से लोग शराब को बदनाम करते है, मैं ऐसे शराब को बदनाम करने वाले लोगों की कटू आलोचना करता हूं, इन्हे समझना चाहिए कि, शराब और शराबी दोनों की अपनी अहमियत है। शराब पीकर बहकना भी बुरा नही, पर बिल ना पटाना, ये तो गलत बात है। मैं ऐसे शराबीयों को जो खासकर इस खाकसार के हमपेशा है, उनकी शराब की बदनामी करने वाली हरकत की निंदा करता हूं ।
जवाब देंहटाएं@ याज्ञवल्क्य जी आपने सही कहा। एक कहावत भी है, 'बुरे पीने वाले अच्छे भले शराब को भी बदनाम कर देते हैं।'
जवाब देंहटाएंLekin phir bhi peene walon ke apane tark hote hain ..........Nothing is good or bad in the world, but thinking makes it use.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा हुआ की मैनें साथिय़ो के ना जाने के कारण इस आयो जन से दूरी बना ली...वरना शायद यही गीत गुनगुनाना पड़ता कि...मुफ़्त हुये बदनाम किसी से हाय दिल को लगा के....वाह अतुल जी प्यार से मारा है आपने...पर तमाचा झन्नाटेदार है..........
जवाब देंहटाएंजो हुआ अच्छा नहीं हुआ ,पर क्या इससे नए लोगों ने कोई सीख ली ?..अगर हाँ, तो आगे कुछ अच्छा होनें की उम्मीद की जा सकती है...
जवाब देंहटाएंभाई अतुल बुद्धिजीवियों की इस आदत ने ही उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा है। कुछ चंद सिक्कों में बिक जाते हैं और कुछ एक बोतल में। सब तरफ यही नजारा है। हम 9 तारीख को तो मिले ही थे। लेकिन बातचीत नहीं हो पायी। स्टेशन पर छोटी सी मुलाकात ही रही। लेकिन बहुत अच्छा लगा। पुस्तक को एक बार देखाभर है। पढ़ना अभी शेष है।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअभी हाल में एक न्यूज़ चैनल के भोपाल स्थित ब्यूरो चीफ़ को शिवराज सिंह चौहान सरकार की ओर से बाकायदा एक सरकारी पत्र जारी किया गया...जिसमें लिखा था कि आपने सरकार के साथ अच्छा सामंजस्य बनाया है इसलिए आपके चैनल को ज्यादा सरकारी एड जारी किए गए हैं...ये महाशय मार्केटिंग के नहीं थे...इनका काम पत्रकारिता है...अब ये कैसी पत्रकारिता करते होंगे, इसका खुद अंदाज़ लगाया जा सकता है...
जवाब देंहटाएंएक सूटकेस में सफारी सूट लेने वाले पत्रकारों से आदर्शों की उम्मीद करना भी नासमझी है...अब आलीशान होटल में दारू देखकर जीभ तो लपलपानी ही थी...बेचारों को क्या पता था दारू का भुगतान सरकार नहीं करने वाली है...
तुम्हारे लिए सलाह...बस खुद को देखो, हम खुद क्या करते हैं...हमें बस अपनी नज़रों से गिरना नहीं चाहिए...किसी से ऐसा कोई एहसान नहीं लेना चाहिए कि उसके बोझ तले कलम ही दब जाए और हम गलत को गलत ही न लिख सकें...
जय हिंद...
@ शुक्रिया विनय भाई, पर ऐसे हालात के तर्क का कोई औचित्य होता है क्या... ?
जवाब देंहटाएं@ शुक्रिया अली जी... और शायद आपको ही सबसे ज्यादा 'चंदा' देना पडता...
@ धन्यवाद अर्चना जी...
@ अजीत जी सही कहा आपने। चंद लोगों की इसी तरह की हरकत ने सबको बदनाम कर दिया है।
जवाब देंहटाएंमुझे भी आपसे मुलाकात कर अच्छा लगा। हालांकि दो मिनट की ही सही। किताब के लिए शुक्रिया। अभी दो अध्याय ही पढ पाया हूं।
@खुशदीप जी आपका आभार। आपकी सलाह पर हमेशा कायम रहने की कोशिश करूंगा।
जवाब देंहटाएंगंभीर मुद्दा
जवाब देंहटाएंगंभीर तो है पर क्या करें ऎसी चीज हर जगह है जो बताती भी है भारत वाकई में एक है !
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