आखिरकार अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल के रास्ते अलग हो गए। लंबे समय से यह लग रहा था कि दोनों की सोच जुदा है और दोनों के भाव अलग। यह अलग बात है कि दोनों एक ही मंजिल के मुसाफिर (जैसा कि वे दोनों कहते हैं) थे। अब जब दोनों अलग हो गए हैं। एक बड़ा सवाल पूरे देश के जेहन में कौंध रहा है कि कैसे ये दोनों अपने अपने रास्तों से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे? कैसे जन लोकपाल के लिए ये जेहाद को अंजाम तक पहुंचाएंगे?
जन लोकपाल और भ्रष्टाचार को लेकर एक आंदोलन की शुरूआत 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' के बैनर तले शुरू हुई थी और पहली बार जब यह संस्था मैदान में उतरी थी तो एक जनसैलाब सा उमड़ पड़ा था। न सिर्फ दिल्ली बल्कि देश के तकरीबन हर शहर, हर गांव, हर मोहल्ले में 'तू भी अन्ना, मैं भी अन्ना' के नारों के साथ युवा सिर पर 'अन्ना टोपी' लगाकर घूमने लगे थे। उस समय यह लगने लगा था कि ये कुछ कर सकते हैं। देश का युवा बदलाव चाहता था और उसे उम्मीद हो गई थी उनकी इस चाह को पूरा करने का काम ये लोग कर सकते हैं, पर धीरे धीरे यह भ्रम टूटता गया और 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' के लोग भ्रष्टाचार से लडऩे के बजाय, भ्रष्ट लोगों से लडऩे के बजाय एक दूसरे में ही उलझ कर रह गए। पिछले दिनों देश की राजधानी में हुए इस बैनर के प्रदर्शन में भी यही नजारा दिखा। आमरण अनशन शुरू हुआ और जमकर हुई नौटंकी के बाद देश की मांग के नाम पर अचानक अनशन को खत्म कर दिया गया। साथ ही एक ऐसे राजनीतिक दल के गठन का सपना भी दिखाया गया जो अपने आप में अलहदा होता। एक ऐसा राजनीतिक दल जिसमें कोई हाईकमान नहीं होगा, जिसके पदाधिकारी जनता तय करेगी, जिसके उम्मीदवार जनता के बीच से आएंगे... ऐसी कई बातें की गईं, लेकिन दो-तीन दिन में ही इस घोषणा की हवा निकलनी शुरू हो गई और अन्ना हजारे ने किसी भी प्रकार के राजनीतिक दल के गठन से खुद को अलग करने की घोषणा कर दी। उन्होंने साफ कर दिया कि वे इस फैसले में साथ नहीं हैं।
अब अन्ना ने अपने तब के घोषणा से कुछ आगे जाते हुए एक तरह से अरविंद केजरीवाल को अपनी 'मिल्कियत' से बेदखल कर दिया है। अन्ना हजारे ने साफ कर दिया है कि वे किसी भी राजनीतिक दल का हिस्सा नहीं होंगे। उन्होंने अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम को कह दिया है कि वे न ही उनके (अन्ना हजारे) के नाम का और न ही तस्वीर का इस्तेमाल कर सकते हैं। अन्ना ने साफ कर दिया है कि अरविंद केजरीवाल को राजनीतिक पार्टी बनाना है तो बनाएं पर वे उनके दल के प्रचार के लिए नहीं जाएंगे। हालांकि उन्होंने यह जरूर कहा कि दोनों (केजरीवाल और अन्ना) की मांग समान है पर रास्ते जुदा हैं। अपने आंदोलन को निरंतर चलाते रहने का भरोसा दिलाते हुए अन्ना हजारे ने स्वीकार किया कि ये उनकी कमजोरी है कि टीम टूट गई।
इस टीम के टूट जाने से अन्ना और अरविंद केजरीवाल के अलग हो जाने के बाद अब इन दोनों के आंदोलन के स्वरूप और सफलता को लेकर सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि एक तरफ जहां अन्ना हजारे 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' का 'चेहरा' थे तो दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल इसके 'दिमाग'। और जब चेहरा और दिमाग दोनों एक साथ रहने में सफल नहीं हो पाए तो कैसे ये देश को जोड़ पाएंगे?
जन लोकपाल और भ्रष्टाचार को लेकर एक आंदोलन की शुरूआत 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' के बैनर तले शुरू हुई थी और पहली बार जब यह संस्था मैदान में उतरी थी तो एक जनसैलाब सा उमड़ पड़ा था। न सिर्फ दिल्ली बल्कि देश के तकरीबन हर शहर, हर गांव, हर मोहल्ले में 'तू भी अन्ना, मैं भी अन्ना' के नारों के साथ युवा सिर पर 'अन्ना टोपी' लगाकर घूमने लगे थे। उस समय यह लगने लगा था कि ये कुछ कर सकते हैं। देश का युवा बदलाव चाहता था और उसे उम्मीद हो गई थी उनकी इस चाह को पूरा करने का काम ये लोग कर सकते हैं, पर धीरे धीरे यह भ्रम टूटता गया और 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' के लोग भ्रष्टाचार से लडऩे के बजाय, भ्रष्ट लोगों से लडऩे के बजाय एक दूसरे में ही उलझ कर रह गए। पिछले दिनों देश की राजधानी में हुए इस बैनर के प्रदर्शन में भी यही नजारा दिखा। आमरण अनशन शुरू हुआ और जमकर हुई नौटंकी के बाद देश की मांग के नाम पर अचानक अनशन को खत्म कर दिया गया। साथ ही एक ऐसे राजनीतिक दल के गठन का सपना भी दिखाया गया जो अपने आप में अलहदा होता। एक ऐसा राजनीतिक दल जिसमें कोई हाईकमान नहीं होगा, जिसके पदाधिकारी जनता तय करेगी, जिसके उम्मीदवार जनता के बीच से आएंगे... ऐसी कई बातें की गईं, लेकिन दो-तीन दिन में ही इस घोषणा की हवा निकलनी शुरू हो गई और अन्ना हजारे ने किसी भी प्रकार के राजनीतिक दल के गठन से खुद को अलग करने की घोषणा कर दी। उन्होंने साफ कर दिया कि वे इस फैसले में साथ नहीं हैं।
अब अन्ना ने अपने तब के घोषणा से कुछ आगे जाते हुए एक तरह से अरविंद केजरीवाल को अपनी 'मिल्कियत' से बेदखल कर दिया है। अन्ना हजारे ने साफ कर दिया है कि वे किसी भी राजनीतिक दल का हिस्सा नहीं होंगे। उन्होंने अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम को कह दिया है कि वे न ही उनके (अन्ना हजारे) के नाम का और न ही तस्वीर का इस्तेमाल कर सकते हैं। अन्ना ने साफ कर दिया है कि अरविंद केजरीवाल को राजनीतिक पार्टी बनाना है तो बनाएं पर वे उनके दल के प्रचार के लिए नहीं जाएंगे। हालांकि उन्होंने यह जरूर कहा कि दोनों (केजरीवाल और अन्ना) की मांग समान है पर रास्ते जुदा हैं। अपने आंदोलन को निरंतर चलाते रहने का भरोसा दिलाते हुए अन्ना हजारे ने स्वीकार किया कि ये उनकी कमजोरी है कि टीम टूट गई।
इस टीम के टूट जाने से अन्ना और अरविंद केजरीवाल के अलग हो जाने के बाद अब इन दोनों के आंदोलन के स्वरूप और सफलता को लेकर सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि एक तरफ जहां अन्ना हजारे 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' का 'चेहरा' थे तो दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल इसके 'दिमाग'। और जब चेहरा और दिमाग दोनों एक साथ रहने में सफल नहीं हो पाए तो कैसे ये देश को जोड़ पाएंगे?
आपके सवाल बाजिब हैं ...!
जवाब देंहटाएंदिमाग और चेहरा जब एक साथ कम कर रहे थे तो सफल
जवाब देंहटाएंहोने की उम्मीद भी थी पर अब सिर्फ सवाल, सवाल और सवाल...???????????????